Sunday 22 November 2015

नईदुनिया ब्ळॉग, इन्दौर - 30 अक्टूबर 2015

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नईदुनिया ब्‍लॉग : दूसरों को नई जिंदगी देने में हम भी तो सहभागी बनें - देवेंद्र सिंह सिसौदिया - See more at: http://naidunia.jagran.com/editorial/naidunia-blog-we-have-to-participate-for-giving-new-life-to-others-540587#sthash.iychZ8zm.dpuf

गत रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 'मन की बात" कार्यक्रम में कुछ अन्य मुद्दों के अलावा अंगदान (ऑर्गन डोनेशन) पर भी बात करते हुए लोगों से इसे जागरूकता अभियान के रूप में लेने की अपील की। उनकी यह अपील दिल को छू गई। वाकई अंगदान की मुहिम को सतत सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने की जरूरत है।
कुछ दिन पूर्व प्रदेश के इंदौर शहर से ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से एक लिवर दिल्ली के मेदांता अस्पताल में पहुंचा और एक जरूरतमंद को नई जिंदगी मिली। इस कार्य के लिए इंदौर की देशभर में चर्चा हुई। यह सही है कि अंगदान जैसे पुनीत कार्य में हम अभी तमिलनाडु सरीखे राज्यों से काफी पीछे हैं। इसके पीछे लोगों में जागरूकता की कमी के साथ-साथ अंधविश्वास जैसे कारण भी जिम्मेदार हैं।
अगर धार्मिक अंधविश्वास आपको अंगदान करने से रोकते हैं तो महान ऋषि दधीचि को याद कीजिए, जिन्होंने लोकहित में अपनी हड्डियां दान कर दी थीं। कुछ लोग सोचते हैं कि जो अंग हम दान कर देते हैं, वो अगले जन्म में शरीर में नहीं रहेगा। है ना कितनी हास्यास्पद सोच! यदि आपने लिवर या किडनी का दान किया है तो अगले जन्म में ये दोनों अंग नहीं होंगे? कोई इनसे पूछे कि अगर ये दोनों अंग नहीं होंगे, तो अगला जन्म कैसे संभव है? फिर अगला जन्म किसने देखा?
अंगदान के माध्यम से एक इंसान (मृत और कभी-कभी जीवित भी) अपने स्वस्थ अंगों और टिशूज को ट्रांसप्लांट कर 50 जरूरतमंद लोगों की मदद कर सकता है।
देश में प्रतिवर्ष तकरीबन पांच लाख लोगों की मृत्यु केवल अंगों के नाकाम होने के कारण होती है, जिसमें 2 लाख लोग लिवर फेल्योर, 1.5 लाख लोग किडनी फेल्योर के कारण मरते हैं। आश्चर्य की बात है कि सालाना डेढ़ लाख किडनी में से केवल 5 हजार किडनी ही उपलब्ध हो पाती हैं। वहीं रोशनी की आस देख रहे एक लाख दृष्टिहीनों पर सिर्फ पच्चीस हजार आंखें ही उपलब्ध हो पाती हैं। जरूरत के मुताबित बेहद कम आपूर्ति की वजह से ही मानव अंगों की तस्करी, बच्चों के गुम होने और धोखाधड़ी कर अंग निकालने की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं।
अंगदान महादान है, जिसके जरिए आप कई जरूरतमंदों को नई जिंदगी दे सकते हैं। इसके दो तरीके हो सकते हैं। अनेक एनजीओ और अस्पतालों में अंगदान से संबंधित काम होता है। इनमें से कहीं भी जाकर आप एक फॉर्म भरकर संकल्प कर सकते हैं कि आप मरने के बाद अपने इस-इस अंग को दान करना चाहते हैं। हां, दान का संकल्प करने के पश्चात ये जरूर याद रखें कि अपने परिवार को इस बात की जानकारी दे दें। अंगों का प्रत्यारोपण 6 से 12 घंटे के भीतर कर दिया जाना चाहिए। जितना जल्दी प्रत्यारोपण होगा, उस अंग के काम करने की क्षमता और संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
एक नवजात शिशु से लेकर 90 साल के बुजुर्ग तक अंगदान कर सकते हैं। केरल के तिरुवंतपुरम में तीन साल की अंजना ने अपनी दोनों किडनियां, लिवर और कॉर्निया का दान किया। तीन साल की बेटी ये काम कर सकती है तो हम क्यों नहीं!
-लेखक बीमा अधिकारी हैं।
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