पीठ पर बोझ
सुबह सुबह
पीठ पर लादे बस्ता
वो लड़की
चली जा रही थी
स्कूल बस की ओर
सुनहरे भविष्य की
खोज में ।
ठीक उसी समय
चली जा रही थी
अपनी पीठ पर डाले
एक बड़ा सा खाली बोरा
कचरे के ढेर से
चमकीली पन्नियों
में
खोजते हुए
सुनहरा वर्तमान ।
शाम को
दोनों लौटती
अपने अपने घर
लिये
होम वर्क का बोझ
एक को करना था पूरा
माँ के साथ बैठ कर
तो दूजी को
पूरे घर के काम
माँ के घर आने से
पहले ।
दिन भर की थकावट
के बाद दोनों
सो जाती निदिंयाँ
रानी की
गोद में
एक सुनहरी सुबह
की आश में ।
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देवेन्द्रसिंह सिसौदिया