आयकर समाप्त कर
कालाधन रोका जा सकता है
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
भारत सरकार व्यक्तियों, हिंदू अविभाजित परिवारों (एचयूएफ),
कंपनियां, फर्मों, सहकारी समितियों और ट्रस्टों (जिन्हें व्यक्तियों और लोगों के समूह के रूप
में पहचान प्राप्त है) और किसी भी की अन्य कृत्रिम व्यक्ति के कर योग्य आय पर एक आयकर लगाता है। कर का भार प्रत्येक व्यक्ति पर अलग होता है। यह उदग्रहण भारतीय आय कर अधिनियम, 1961 द्वारा शासित
किया जाता है। भारतीय आयकर विभाग, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड(सीबीडीटी) द्वारा
संचालित है । प्रति वर्ष भारत सरकार के
वित्त मंत्रालय के द्वारा इस हेतु बज़ट में
प्रावधान करती है । आज लगभग चालीस वर्ष पश्चात हमारे देश के केवल 3 प्रतिशत
व्यक्ति आयकर के दायरे में आ पाए है । पिछले तीन वर्षों में हमारे देश में आयकरदाताओं की संख्या में कुछ बढ़ोतरी
हुई है, लेकिन अब भी यह संख्या केवल
तीन करोड़ 50 लाख ही है, जो कुल आबादी
का तीन प्रतिशत भी नहीं है । ऐसे में यह विचारणीय पहलू है कि हम केवल 3 प्रतिशत
लोगों को ही इस ब्रेकेट में ला पाए है । इन करदाताओं से जो राशि संग्रहित होती है
उसके संग्रहण और लेखा जोखा रखने के लिए करोड़ों रुपये की राशि व्यय की जाती है ।
दूसरी ओर कर से
बचने की जुगाड़ में कई अवैध धन्धे पनपते है और कालाधन संग्रह होता है । कालेधन की
वजह से ही भ्रष्टाचार, मह्ंगाई , हथियारों की तस्करी, शराब और ड्रग्स के अवैध
कारोबार और हवाला करोबार जैसे कई अनैतिक
कार्य को बढावा मिलता है । तो फिर क्या आयकर को समाप्त कर देना चाहिए ? दुनिया के
कई देश है जहाँ आयकर नहीं लगता है जैसे संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बुनेई आदि । यदि
आयकर समाप्त कर दिया गया तो फिर देश का
राजस्व कहाँ से आयेगा ? सेवाकर के दायरे को बड़ाने के साथ उनकी वसूली और राशि को
देश के राजस्व में जमा होने को सुनिश्चित करने हेतु कड़े कदम उठाये जाए । गैर जरुरत
मंद लोगों को प्रदान की जा रही विभिन्न प्रकार की सब्सिडी को समाप्त किया जाए ।
बड़े कृषकों से कृषि उत्पाद पर मंडी स्तर पर कर लिया जाए ।
आयकर
समाप्त होने से जीडीपी बड़ेगा, रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, मह्ंगाई घटेगी
और मध्यम वर्ग के लोगों के पास अतिरिक्त
राशि रहेगी जो मनी फ्लो को बढायेगी । साथ ही देश का पैसा देश में ही रहेगा वो
कालेधन के रुप में जमा नहीं होगा । उम्मीद है सरकार सब्सिडी और कर प्रणाली में
आवश्यक सुधार करेगी ताकि कालेधन पर अंकूश लग सके ।