Tuesday 26 August 2014

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

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writing the book(अतिथि व्यंग्यकार) देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
हमारे देश में ये बड़ी समस्या है। जिसको जो काम दिया वो नहीं करता और दूसरों के काम में जरुर टांग अड़ाते हैं । लेखकों का काम है लिखने का, डॉक्टर का चिकित्सा का, लोकसेवकों का बाबूगिरी का और नेता का नेतागिरी का। आज कल एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण करने की फैशन सी चल पड़ी है । लेखक के पेशे को भी लोगों ने छोड़ा नहीं है । देश के नेता और लोक सेवक बदस्तूर किताब लिखने में व्यस्त हैं । चाहे जिन्दगी भर खुद के भाषण दूसरों से लिखवाए होंगे किंतु जिन्दगी की संध्या में सब को लेखन का शौक परवान चढ़ जाता है । कहते है फिल्मों की सफलता हेतु जिस प्रकार आईटम सांग का सहारा लिया जाता है ठीक वैसे ही पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े नेताओं के चरित्र और काम काज़ के तोर तरीकों का ज़िक्र किया जा रहा है ।
हारे हुए नेताओं, सेवानिवृत्त हुए सचिवालय के सलाहकर एवं सचिवों ने किताब क्या लिख दी, पूरे देश में तहलका मच गया । हर समाचार चैनल और समाचार पत्रों में किताब की समीक्षा प्रारम्भ हो गई । तहलका तो मचना ही था। हकीकत भी बयाँ की तो किसकी और किस समय । इनको किताब लिखना ही था तो कोई और विषय नहीं मिला। पहले ही समस्या कम थी जो एक नई समस्या खड़ी कर दी । इनको शेर और बिल्ली में भेद पता नहीं जो ऐसी ना समझी वाली बात कर दी । इतने बड़े आदमी थे। थोड़ा सोचते-विचारते । क्या इसके नतीजों से ये वाकिब नहीं थे? आपकी चन्द लाइनों ने हमारी लाइन को कितना छोटा कर दिया, पता है आपको ? हार चुके थे, आराम का जीवन व्यतीत करते, ऐशो आराम से रहते किंतु इन्होंने तो हाईकमान का भी सेवानिवृत्त होने का इंतजाम कर दिया ।
जीवन भर जिन्होंने नमक खाया वो कैसे नमक हराम हो गए । पूरा जीवन हमारे खेमे में रह कर ऐशो- आराम किया, विदेश यात्राएं की, करोड़ों की सम्पति बनाई वो अचानक विपक्षियों की भाषा बोलने लगे हैं । कहते है हमारी बिरयानी का स्वाद बदल गया है ।
ऐसे ही हमारे पूर्व नेताओं ने भी अपने कार्यकाल के बारे में, अपने तत्कालीन बॉस के बारे में, अपने पड़ोसी देश के नेताओं के बारे में किताबें लिखकर कई बवण्डर खड़े किये । इन बवण्डर में कईं पेड़ जड़ से उखड़ गए। इतना ही नहीं, कईं आत्मकथाओं ने तो जो स्वर्गवासी हो चुके थे, उनकी आत्मा को भी झकझोर दिया और जो जीवित है उनका जीवन दूभर कर दिया ।
मेरा निवेदन है ईश्वर ने सारी सुख सुविधाए दी है, उनका लुत्फ उठाए । जहाँ तक लेखन का काम है वो लिखने वाले बहुत हैं । आप तो उनकी लिखी किताबों का विमोचन करें, उन्हें प्रोत्साहित करें और शुभकामनाएं सन्देश भेजते रहें । अंत में कहूंगा, “ जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूते बाजे”।