कैलाश और मलाला की दोहरी भूमिका का वक्त
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
नोबेल
शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी भारत से और मलाला यूसुफजयी पाकिस्तान से है
। दोनों देशों की राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति एकदम
विपरित है । एक ओर जहाँ भारत के सत्यार्थी है जिन्हें दूसरे ही दिन
प्राधनमंत्री मोदी ने मुलाकात कर बधाई देते वहीं दूसरी ओर मलाला है जो अपने
ही देश में महफ़ूज नहीं है । पाकिस्तानी समाचार पत्र डान के अनुसार
प्रतिबन्धित आतंकवादी संगठन तहरीके तालिबान के प्रवक्ता शहाउल्ला शाहिद ने कहा कि
उन्हें पता है कि 17 वर्षीय मलाला को इस्लाम के दुश्मन
पुरस्कृत करेंगे । उसने कहा कि मलाला ने धर्मनिरपेक्षता के लिए इस्लाम छोड़ दिया
जिसके लिए उसे पुरस्कार दिया जा रहा है ।
नोबेल
शांति से पुरस्कृत इन दोनों पड़ोसी देशों के मध्य रिश्तों में शुरु से खटास है ।
पाकिस्तान लगातार युद्ध विराम का उल्ल्ंघन करता रहा है और घूसपैठियों को भारत में
प्रवेश दिलाता रहा है । आतंकवादी स्ंगठनों के दबाव में अंतर्रराष्ट्रीय स्तर पर काश्मीरी राग अलापना उसकी आदत सी हो गई है ।
पाकिस्त्तान सरकार की स्थिति गले की हड्डी के समान हो गई है । अंतर्रराष्ट्रीय
स्तर से पड़्ते दबाव में आकर यदि आतंकवादियों पर कठोर कार्यवाही करे तो उनकी आँख की
कीरकीरी बन जाता है । हाँलाकि वो देखावे के लिए जरुर छोटी-मोटी कार्यवाही करता है
किंतु यह पर्याप्त नहीं है । दूसरी ओर एक छोटी सी कार्यवाही का नतीजा ये होता है
कि पेशावर में मासूम बच्चों की बडी क्रुरता से जान ले ली गई ।
पेशावर
की दर्दनाक घटना के पश्चात पाकिस्तान सरकार वर्षों से रुकी फांसी की सजा को बहाल
कर दिया । परिणाम स्वरुप कुछ ऐसे कैदियों को फांसी दी गईं जिन पर वहाँ के नेताओं
को जान से मारने की साजिश और कोशिश की थी । दूसरी ओर मुम्बई हादसों के आरोपी खूले
आम घूम रहे है और भारत विरोधी गतिविधियों को संचालित कर रहे है उन्हें सबूतों के
अभाव में जमानत दी जा रही है । पाकिस्तान की य दोमूही नीतियों को पूरी दुनिया गौर
से देख रही है । ये सोच कि इनका आका अमेरिका इसको हमेशा साथ देता रहेगा ये भूल जाए
और अपने पड़ोसियों से अच्छे तालूकात स्थापित करना चाहिए । ये वो ही अमेरिका है
जिसने ओसामा बिन लादेन को इन्हीं की जमी पर निस्तनाबूत कर दिया । पेशावर की घटना के पश्चात ये सम्भावना की जाती
है कि जो आस्तिन के साँप इन्होंने पाल रखे है उन्हें बाह्रर निकाल कर उन्हें उनकी
मुनासिफ जगह पर पहुँचा देंगे । इसी में
इनकी समझदारी होगी ।
भारत के सत्यार्थी ने बाल मजदूरी
के खिलाफ एक लम्बी लड़ाई छेड़ रखी है वहीं मलाला मुस्लीम महिलाओं की आजादी के
खिलाफ जेहाद का आगाज़ किया है । दोनों के उद्देश्य लगभग एक से है । सम्भव है इन
दोनों देशों के निवासियों को एक साथ पुरस्कृत करने का उद्देश्य दोनों देशों के
दरमियाँ जो रिश्ते बिगड़े है उसे सुलझाने का हो । ऐसे में इन दोनों की दोहरी भूमिका
निभाने की बारी है कि वो अपने अपने देशों की ओर से शांति कायम करने का काम करे । आशा
है मलाला पाकिस्तान सरकार को आंतरिक शांति कायम करने के साथ ही पड़ोसियों से मधुर
सम्बन्ध स्थापित करने कि लिए बाध्य करेगी । पाकिस्तान सरकार की भी नैतिक
जिम्मेदारी बनती है कि वो आतंकी संगठनों के चुंगल से बाहर आकर क्षेत्र मे अमन
शांति का वातावरण निर्मित कर मलाला को दिये शांति के
नोबेल पुरस्कार की लाज रखे ।
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