क्या होगा इनका भविष्य ?
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
म.प्र.व्यावसायिक परीक्षा मण्डल द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित प्रे-मेडीकल
टेस्ट ( पी.एम.टी ) में हुए घोटाले में
अभी तक 345 छात्रों की परीक्षा निरस्त कर दी है एवं लगभग 70 छात्र - छात्राओं के
प्रवेश को निरस्त कर दिया है । स्पेशल टॉस्क फोर्स ( एस.टी.एफ़ ) इस मामले की जाँच
कर रहा है । इन छात्र - छात्राओं मे कुछ तो कोर्स के दूसरे - तिसरे वर्ष में
अध्य्नरत थे । कुछ बच्चे और उनके अभिभावक फरार है ।
ये सही है कि इस तरीके से प्रवेश पाने वाले छात्र - छात्राएं इस डीग्री
के योग्य नहीं थे । कमजोर व्यव्स्था का फायदा उठा कर इन लोगों ने पैसे के बल पर
प्रवेश पा लिया । लेकिन ये भी सच है कि वे मासूम बच्चे जो जीवन के बहुमूल्य
सोलह-सत्रह वर्ष कड़ी मेहनत कर आए थे क्या अकेले दोषी है ? ये चिंता का गहन विषय है
।
शंका के घेरे में आए छात्र - छात्राओं की दो- तीन श्रेणी हो सकती है ।
प्रथम वो जिसमें छात्र - छात्राओं को ये
पता था कि वे इस टेस्ट को पास नहीं कर पायेंगे । ऐसे में उन्होनें इन दलालों से
सम्पर्क किया और व्यव्स्था का फायदा उठाते हुए येन केन टेस्ट को पास कर प्रवेश पा
लिया । इस प्रक्रिया में निश्चित रुप से
उनके अभिभावकों ने हर प्रकार से सहयोग दिया होगा ।
दूसरे वो छात्र - छात्राएं है जिन्हें स्वयं कुछ पता नहीं किंतु उनके
अभिभावकों ने उच्च महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए दलालों से सम्पर्क किया और
अपनी काली कमाई के सहारे से उनकों टेस्ट पास करवाया और प्रवेश दिला दिया ।
तिसरी श्रेणी वो है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सम्भवतः शामिल
नहीं हो किंतु शंका के घेरे में आ गए हैं
। इस प्रकार इन तीनों श्रेणियों के छात्र - छात्राएं आगे के अधय्यन से वंचित हो गए
हैं । कुछ बच्चे और अभिभावक जाँच के घेरे में होने से पुलिस की पूछ्ताछ का सामना कर
रहें हैं । इसमें जो भी दोषी है उन्हें
सजा जरुर मिलना चाहिए किंतु उन बच्चों की मनोदशा क्या होगी जो किशोर अवस्था से
गुजर रहे हैं । जाँच के पश्चात यदि ये निकलता है कि वे दोषी नहीं है तो बताइये
उनके भविष्य का क्या होगा ? क्या वे इस दाग को मिटा पायेंगे और पुनः समाज के समक्ष
पुनर्स्थापित हो पायेंगे ?
किशोरअवस्था बच्चों में एक वो अवस्था होती है जिसमें वे अपनी स्वतंत्रता
से विकास करने का प्रयास करते हैं । एक स्वस्थ सामाजिक वातावरण मिलने से किशोर
अपने जीवन की दहलीज़ पर सफलतापूर्वक पहला
कदम रखता है । किंतु इसी के विपरित उसे यदि गलत वातावरण मिले तो वो समाज के किए
समस्या भी बन सकता है । ये बच्चे सभी किशोरअवस्था
से गुजर रहे हैं । इनकी मनोस्थिति किस अवस्था में होगी हम बेहतर समझ सकते
हैं । ऐसे में इन्हें अपराध की ओर जाने से रोकने हेतु या कोई अप्रिय घटना घटे उसके
पूर्व ही इनमें विश्वास जागृत करना होगा ।
जैसा कि हम भली भांती समझते है कि हमारे यहाँ कि जाँच और न्यायिक प्रकिया
की चाल कितनी धीमी है । यहाँ फास्ट ट्रेक न्यायलयों में भी फैसले सत्तर अस्सी सुनवाई के पश्चात एक
डेढ वर्ष में आता है । तो क्या इस लम्बी प्रकिया और फैसले के इंतजार में ये किशोर
अपने जीवन के निर्णायक समय को ऐसे ही जाया कर देंगे ? प्राकृतिक न्याय इसकी कभी ईजाजत नहीं देता ।
तो फिर कुछ ऐसे उपाय होंगे जो इन्हें इस झंझावात से बाहर निकाल सके ?
एक अलग से स्वतंत्र एजेंसी द्वारा पुनः
प्रवेश टेस्ट को लिया जाए । और टेस्ट
में उत्तीर्ण होने पर इन किशोरों को दोष मुक्त कर अपने सुनहरी भविष्य की ओर
आगे जाने का अवसर दिया जाए । हाँ, इनसे ग्रामीण क्षेत्र में दस वर्ष तक सेवा करने
का बॉण्ड जरुर भरवाया जाए । जो अभिभावक दोषी करार दिये जाते हैं उन्हें कानूनसम्मत सजा दी जाए । यहाँ किसी भी तरह से अपराध की
पैरवी नहीं की जा रही है किंतु ये अपराध ऐसा भी नहीं है जिसकी सजा वो जीवनभर भोगे
। एक हत्या का अपराधी भी द्स साल की सजा भोग कर पुनः समाज में अपने परिवार के साथ सामान्य जीवन यापन करने लगता है तो फिर ये क्यों नहीं ?
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