Friday 1 August 2014

प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल, www.newsforall.in

न्यूज़ फ़ॉर ऑल

प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल

देवेन्द्रसिंह सिसौदिया 
प्रधान मंत्री अपनी ब्रिक्स यात्रा के दौरान केवल दूरदर्शन, पीटीआई और एएनआई के केवल छह पत्रकारों को अपने साथ लेकर गए । प्रधानमंत्री के इस कदम को कई नजरियों से देखा जा रहा है। कहा जाता है कि वे कांग्रेस की इस परम्परा को तोड़ना चाहते है जिसमें लगभग 35-40 पत्रकार और सम्पादक, प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा किया करते थे । पत्रकार बन्धुओं में इस बात को लेकर काफी प्रतिक्रियाएँ की जा रही है । कुछ इसे सही मानते तो कुछ गलत । बह्स का एक मुद्दा बन गया है। प्रधान मंत्री के इस निर्णय के पिछे दो कारण हो सकते है । पहला विदेश यात्राओं के नाम पर हो रहे खर्चों को कम करना । बड़े बड़े प्रतिनिधिमण्डल सामान्य तौर पर ऐसी यात्राऑं में शामिल होते है । इनमें पत्रकारों के साथ अधिकारी और अन्य सदस्य होते हैं । उन्हें लगता है जो भी कार्यवाही वहाँ होगी उसकी रिपोर्टींग एक पत्रकार करेगा जो सो पत्रकार । फिर क्यों इतने लोगों के भारी भरकर खर्च को आम गरीब जनता के सर पर डाला जाए । यदि इस प्रकार होने वाले व्यय को रोका जाए तो काफी राजस्व की बचत की जा सकती है । इस बचे हुए राजस्व को किसी और अन्य कल्याणकारी योजनाओं मे व्यय करने से आम जनता को लाभ पहुँचेगा । जो मीडिया मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभा रहा था वो भी इस कार्यवाही को ठीक नहीं बता रहा है । कई पत्रकार और सम्पादक तो बुलावे का इंतज़ार ही करते रह गए कि उन्हें साथ जाने का न्योता मिलेगा । किंतु वे केवल कुछ ऐजेंसियों के पत्रकारों के एक छोटे प्रतिनिधि मण्डल को लेकर विदेश पँहुच गए । वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य ने फेसबुक पर इसी मुद्दे को लेकर एक बह्श छॆड़ी । वॉल पर आई प्रतिक्रियाएँ काफी दिलचस्प है । एक पत्रकार तो कहते हैं वे पैसा देकर ऐसी यात्रओं मे शामिल होते हैं । इसकी सत्यता को आप समझ ही गए होंगे । एक कमेंटस बड़ा हास्यास्पद आया कि मोदी नहीं चाह्ते थे कि इस यात्रा की कमी को भारत तक पँहुचने दिया जाए । कुछ ने पत्रकारिता के गिरते स्तर को दोषी माना । वरिष्ठ पत्रकार ओमकार चौधरी अपनी वॉल पर कहते है “ मेरे विचार से तो विदेश दौरों पर पत्रकारों की भारी-भरकम फौज को नहीं ले जाकर प्रधानमंत्री मोदी बहुत उत्तम कार्य कर रहे हैं। जिन्हें उन्हें गालियां ही निकालनी हैं, वे जी भरकर अपना शौक पूरा करें।” बहश होना चाहिए । यह एक स्वस्थ परमपरा है । विचारणीय प्रश्न ये है कि क्या पत्रकारों के भारी भरकम दल का उनके साथ होना आवश्यक था या नहीं ? देखा जाए जो इस यात्रा में जो कुछ भी हुआ वो पूरी दुनिया तक ठीक वैसे ही पहुँचा जैसे के पूर्व के प्रधानम्ंत्रियों के दौरो के समय होता था । फिर सैकड़ों पत्रकारों का यात्रा के कारवां में शामिल न होने से क्या फर्क पड़ा ? यहाँ ये गोर करने की बात है कि मोदीजी के उच्चस्तरीय शिष्टाचार मण्डल में भी कटौती करते हुए वित्त राज्य मंत्री निर्मला सिथारमन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ए.के. डोवल एवं विदेश सचिव सुजाता सिंह को शामिल किया गया । यदि बात मितव्ययता की है तो आशा की जाती है कि मोदीजी केवल पत्रकारों और सम्पादकों के प्रतिनिधि मण्डल में कटौती तक ही सीमित नहीं रहेंगे अपितु उन सभी शासकीय सेमीनार, कार्यशालाओं, मंत्रियों के विदेशी दौरों, अधिकारियों के शैक्षणिक दौरों, मंत्रियों की यात्राओं के काफिलों जैसे अनेकों अप व्यय वाले काम-काज की समीक्षा कर प्रबन्धकीय एवं स्थापना व्यय में कमी लायेंगे । यदि इस कार्यवाही में सफलता मिलती है तो निश्चित ही इसका लाभ भारत की गरीब जनता और करदाताओं को मिलेगा ।
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल
  • Title : प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल
  • Date : 3:27 PM
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टमाटर भी सचिन की तरह् शतकवीर हो गया





टमाटर भी सचिन की तरह् शतकवीर हो गया । आज जनवाणी में " अब टमाटर शतकवीर " अब शतकवीर टमाटर
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया 

जब से शतकवीर सचिन तेन्दुलकर को भारत रत्न से नवाजा गया है तभी से हर कोई शतकवीर की दौड़ में शामिल हो गया है । जिसकी की दो क़ौड़ी की कीमत नही थी वो भी शतकवीर बनने के ख्वाब देख रहा है । फिर भला सब्जियाँ क्यों पिछे रहती ? उनके भी अपने अरमान है । कौन है जो इज्जतदार नही बनना नहीं चाहता सो आलू टमाटर भी शतकवीर बन बैठे ।
देश में समझों शतकवीर की बाड़ आ गई है । देश का कोई भी घोटाला सो करोड़ से कम का हो तो समझो घोटाला हुआ ही नहीं । इससे छोटे घोटालों को कोई गम्भीरता से नहीं लेता । सीबीआई से जाँच की मांग भी शतकवीर घोटालों की ही होती । जब भी किसी भ्रष्ट बाबू या अफसर के घर छापे पड़्ते है तो 100 करोड़ तो ऐसे निकलते है मानो उसके यहाँ नोटों का झाड़ लगा हो । इसमें साधारण सब्जी ( आलू – टमाटर ? ) खाने वाला चपरासी भी पिछे नहीं रहता । ये भी शतकवीर बने भ्रष्टाचार रत्न की उपाधी प्राप्त करने की दौड़ मे अव्वल है ।
टमाटर की बड़ती महत्ता को देख कर ऐसा लगता है शीघ्र ही कोई फिल्मकार “वेजीटेबल किंग टमाटर” नामक फिल्म बनाकर एक ही सप्ताह में हुई कमाई के सारे रेकार्ड तोड़ देगा । ये दिगर बात है कि इस फिल्म को देखने वे ही लोग सो से डेड़ सो रुपये वाले टिकट खरीद कर जायेंगे जो एक किलो टमाटर नहीं खरीद पा रहे है । इस फिल्म में जो डायलाग होंगे वो इस प्रकार होंगे – “ मेरे पास बंगला है गाड़ी है बैंक बैलेंस है रुपया है , तुम्हारे पास क्या है ? “ मेरे पास टमाटर है ! “ क्या तुमने उन टमाटरों का बीमा करवाया है? गुलजार साहब का गीत “मेरा कुछ सामान, तुम्हारे पास पडा है....... मेरा वो सामान ( टमाटर ) लौटा दो“ दोहराया जायेगा ।

टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है।टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन सी पाये जाते हैं। हर दृष्टी से गुणकारी टमाटर कई बिमारियों को नियन्त्रण करता है । अब टमाटर लोगों के घरों में नही अपितु न्यूज, धरना प्रदर्शनों में ही दिखाई देता हैं । जो भी हो इस बात से कविवर जरुर खुश है कि अब उन्हें मंच पर टमाटर नहीं खाना पड़ेगा क्योंकि महंगे जो इतने हो गए । 
शतकवीर का अपना महत्व होता है । कोई भी कलाकार, लेखक, फिल्मकार , गायक , संगीतकार और खिलाडी तब तक अपने आप को परिपूर्ण नहीं मानता जब तक कि उसकी उस विधा में शतक न लग जाए । इन शतकवीरों में नेताओं को कम न समझना । ह्मारी संसद के एक शतक से अधिक सांसदों की सम्पति शतक लाख ( एक करोड़ ) से अधिक है । फिर भी संसद के कैंटीन में ये गरीब बीस – तीस रुपये खाने की थाली खा कर उदर पूर्ती करते हैं । क्या सब्जियों के दाम बड़्ने के बाद संसद में भी एक थाली भोजन का दाम एक शतक ( सो रुपये ) तक पहुँच गया ? बेचारे आलू ट्माटर सोच रहे होंगे इतनी मेहनत कर हम एक शतक तक डालर को पछाड़ते हुए पहुचे हैं किंतु संसद में तो हमारी इज्जत वही बीस रुपये की ही है । बेचारा शतकवीर टमाटर । 
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