Sunday 31 August 2014

क्या पाकिस्तान में तख्ता पलट के आसार ?

क्या पाकिस्तान में तख्ता पलट के आसार ?
            देवेन्द्रसिंह सिसौदिया

            इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ और मौलवी ताहिर उल-कादरी के समर्थक 17 दिन से नेशनल असेंबली के सामने डेरा डाले हुए हैं। वे प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। सेना प्रदर्शनकारी और सरकार के बीच मध्यस्थता कर रही है।. पाकिस्तान में शनिवार रात हालात बेकाबू हो गए। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे पर अड़े हजारों प्रदर्शनकारियों ने रात 11 बजे उनके आवास और संसद भवन पर धावा बोल दिया। इस्लामाबाद में हुए लाठीचार्ज के बाद पाकिस्तान के अन्य शहरों में विरोध प्रदर्शन की खबर है। पाकिस्तान की व्यापारिक राजधानी कराची में भी देर रात लोग सड़कों पर आ गए। लाहौर, मुल्तान जैसे पाकिस्तान के महत्वपूर्ण शहरों में भी देर रात विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। यह राजनीतिक अस्थिरता ऐसे वक्त आई है जब पाकिस्तान आतंकवादियों और खासतौर पर अफगान सीमा से लगे कबायली इलाके में आतंकवाद के खिलाफ तथा कथित अभियान चला रहा है |
      पाकिस्तान एक मुस्लीम देश है जहाँ लोकतांत्रिक व्यवस्था मौजूद है । कहने को लोकतांत्रिक व्यवस्था है किंतु इतिहास गवाह है कि यहाँ की सरकार पर हमेशा सेना हावी रहती है । दूसरी ओर एक शेडो सरकार आतंकवादी संगठनों और आइ एस एस आई की काम करती है । देश की आंतरिक व्यव्स्था एक दम चरमरा गई है । आर्थिक रुप से बहुत ही कमज़ोर स्थिति से गुजर रहा है । देश का अधिकांश राजस्व सुरक्षा की नाम पर लगा दिया जाता है । छोटे छोटे राजनैतिक दलों को कुचल दिया जाता है । देश  में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर है । प्रधान मंत्री नवाज़ शरीफ पर जो आरोप लगाए है उनमें से एक भ्र्ष्टाचार भी है ।
      पाकिस्तान में सेना प्रमुख जनरल राहिल शरीफ द्वारा संकट से घिरी सरकार और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के इस्तीफे की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों के बीच मध्यस्थता को लेकर दोनों पक्ष एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।  सत्ताधारी दल के कुछ लोगों का कहना है कि विरोध प्रदर्शन को सेना के कुछ महत्वपूर्ण लोगों का भी साथ मिल सकता है। सेना और वर्तमान सरकार में कई मतभेद बताए जाते हैं।
      देश में 67 वर्षो के दौरान अभी तक तीन बार तख्ता पळट हुआ है । सन 1958, 1977 व 1999 में लगभग ऐसी ही स्थिति पैदा हुई थी और सेना के सहारे यहाँ तख्ता पलट दिया गया था । वर्ष 1999 में एक बार नवाज़ शरीफ तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ के द्वारा किये तख्ता पलट  का सामना कर चुके है । सेना का प्रदर्शनकारियों के प्रति नरम रवैया इस शंका को जन्म देता है कि क्या पाकिस्तान में तख्ता पलट के आसार है ?    

                                     ************************

Tuesday 26 August 2014

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूता बाजे

 0 21
writing the book(अतिथि व्यंग्यकार) देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
हमारे देश में ये बड़ी समस्या है। जिसको जो काम दिया वो नहीं करता और दूसरों के काम में जरुर टांग अड़ाते हैं । लेखकों का काम है लिखने का, डॉक्टर का चिकित्सा का, लोकसेवकों का बाबूगिरी का और नेता का नेतागिरी का। आज कल एक दूसरे के कार्यक्षेत्र में अतिक्रमण करने की फैशन सी चल पड़ी है । लेखक के पेशे को भी लोगों ने छोड़ा नहीं है । देश के नेता और लोक सेवक बदस्तूर किताब लिखने में व्यस्त हैं । चाहे जिन्दगी भर खुद के भाषण दूसरों से लिखवाए होंगे किंतु जिन्दगी की संध्या में सब को लेखन का शौक परवान चढ़ जाता है । कहते है फिल्मों की सफलता हेतु जिस प्रकार आईटम सांग का सहारा लिया जाता है ठीक वैसे ही पुस्तकों की बिक्री बढ़ाने के लिए बड़े नेताओं के चरित्र और काम काज़ के तोर तरीकों का ज़िक्र किया जा रहा है ।
हारे हुए नेताओं, सेवानिवृत्त हुए सचिवालय के सलाहकर एवं सचिवों ने किताब क्या लिख दी, पूरे देश में तहलका मच गया । हर समाचार चैनल और समाचार पत्रों में किताब की समीक्षा प्रारम्भ हो गई । तहलका तो मचना ही था। हकीकत भी बयाँ की तो किसकी और किस समय । इनको किताब लिखना ही था तो कोई और विषय नहीं मिला। पहले ही समस्या कम थी जो एक नई समस्या खड़ी कर दी । इनको शेर और बिल्ली में भेद पता नहीं जो ऐसी ना समझी वाली बात कर दी । इतने बड़े आदमी थे। थोड़ा सोचते-विचारते । क्या इसके नतीजों से ये वाकिब नहीं थे? आपकी चन्द लाइनों ने हमारी लाइन को कितना छोटा कर दिया, पता है आपको ? हार चुके थे, आराम का जीवन व्यतीत करते, ऐशो आराम से रहते किंतु इन्होंने तो हाईकमान का भी सेवानिवृत्त होने का इंतजाम कर दिया ।
जीवन भर जिन्होंने नमक खाया वो कैसे नमक हराम हो गए । पूरा जीवन हमारे खेमे में रह कर ऐशो- आराम किया, विदेश यात्राएं की, करोड़ों की सम्पति बनाई वो अचानक विपक्षियों की भाषा बोलने लगे हैं । कहते है हमारी बिरयानी का स्वाद बदल गया है ।
ऐसे ही हमारे पूर्व नेताओं ने भी अपने कार्यकाल के बारे में, अपने तत्कालीन बॉस के बारे में, अपने पड़ोसी देश के नेताओं के बारे में किताबें लिखकर कई बवण्डर खड़े किये । इन बवण्डर में कईं पेड़ जड़ से उखड़ गए। इतना ही नहीं, कईं आत्मकथाओं ने तो जो स्वर्गवासी हो चुके थे, उनकी आत्मा को भी झकझोर दिया और जो जीवित है उनका जीवन दूभर कर दिया ।
मेरा निवेदन है ईश्वर ने सारी सुख सुविधाए दी है, उनका लुत्फ उठाए । जहाँ तक लेखन का काम है वो लिखने वाले बहुत हैं । आप तो उनकी लिखी किताबों का विमोचन करें, उन्हें प्रोत्साहित करें और शुभकामनाएं सन्देश भेजते रहें । अंत में कहूंगा, “ जिसका काम उसी को साजे और करे तो जूते बाजे”।

Monday 25 August 2014

व्यंग्य रचना : पुलिस का हृदय परिवर्तन दिनांक 25 अगस्त 2014

व्यंग्य रचना : पुलिस का हृदय परिवर्तन





आपने पुलिस के एक अधिकारी को मुख्य आरोपी के माथे को चूमने पर निलम्बित होने की खबर पढ़ी होगी। किसी पुलिस वाले ने सम्भवतः पहली मर्तबा मित्र बनने की कोशिश की होगी। हो सकता है उन्होंने रात को अपनी ड्यूटी के दौरान महात्मा गांधी का ये कथन कि 'अपराध से नफरत करो अपराधी से नहीं', पढ़ डाला होगा और बस लग गए उसे आजमाने में। महाशय कोस रहे होंगे अपने आप को पुलिस वाले से एक मित्र बनने की नाकामयाब कोशिश पर। 

FILE


आज तक पूरी दुनिया ने पुलिसिया क्रुर चेहरा देखा है अचानक उनका हृदय परिवर्तन होकर इंसान के रुप में अवतरित होना अचम्भे को तो जन्म देगा ही। पता नहीं कौन सी मजबूरी रही होगी जनाब की जो ऐसा कृत्य कर बैठे। भाई साहब को यदि कोई अच्छा काम करने की सूझी ही थी तो इसी अपराधी को क्यों चुना? या तो इस 'किस' के पीछे राजनैतिक पहलू होगा या भावनात्मक। हो सकता है अपराधी के करीबी जो अपनी भावना को उस तक पहुंचा नहीं पा रहे होंगे उन्होंने इन महाशय को माध्यम बनाया हो। ये भी हो सकता है कि इस काम के लिए उन्हें किसी तरह प्रलोभित किया हो। या एक अच्छा इंसान बनने की अंतरात्मा उन पर हावी हो गई और वो यह कर बैठे। 

क्या पुलिस वाले भाई साहब ने सच में कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया जिसकी सजा उन्हें निलम्बित होकर भोगना पड़ा ? क्या वो केवल डंडे की भाषा का ही उपयोग कर सकता है? क्या उसके अन्दर एक इंसान नहीं हो सकता? उसके मुंह से 'किस' नही 'गाली' ही निकलना चाहिए? अब कोई पुलिस वाला ऐसी हिम्मत कर पाएगा? कैसे हम उम्मीद रखें कि भविष्य में कोई पुलिस वाला मित्र के रुप नजर आएगा? क्या उन्हें प्रशिक्षण के दौरान ये नहीं सिखाया गया कि एक अच्छा इंसान बनने की नुमाईश कैमरे के समक्ष आने पर ही नहीं करे ? ऐसे अनेक प्रश्न इस घटना ने समाज और सरकार के समक्ष खड़े कर दिए हैं। 

मुझे भरोसा है दूसरे पुलिस वाले, इस कदम को एक अच्छा इंसान बनने की ओर अंतिम कदम न समझेंगे। वो इस दिशा में कोशिशें जारी रखेंगे। केवल 'किस' को ही इसका साधन न बनाऐंगे। कसम खाएंगे कि किसी भी अपराध होने से पहले ही वे एक्टिव हो जाएंगे, जब कोई थाने में एफआईआर लिखवाने आए तो उसे दरिदंगी से देखने की बजाय उसको भाई या बहन के रुप में सुनेगें। उसे टरकाने की बजाए तुरंत मामला दर्ज कर आगामी कार्यवाही पर जूट जाएंगे। किसी भी घटना की सूचना मिलने पर मीडिया के पहले स्थल पर पहुंच जाएंगे । यह कर के देखिए आप जरुर एक अच्छे इंसान बन जाएंगे। लोग आपका क्रुर रुप भूल कर एक मित्र की तरह व्यवहार करेंगे । फिर आप को किसी 'किस' विवाद में न पड़ना पड़ेगा बल्कि लोग आपको 'किस' देंगे !

Wednesday 13 August 2014

हो रहा है पुलिस का हृदय परिवर्तन

                      पुलिस का हृदय परिवर्तन
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
      पिछले दिनों उत्तरप्रदेश में हत्या के मुख्य आरोपी के माथे को चूमने पर पुलिस के एक उच्च अधिकारी को  निलम्बित कर दिया । किसी पुलिस वाले का  सम्भवतः पहली मर्तबा ह्र्दय परिवर्तन हुआ और  अपनी छबी सुधारते हुए मित्र बनने की कोशिश की होगी । हो सकता है उन्होंने रात को अपनी ड्यूटी के दौरान महात्मा गांधी का ये कथन  “ अपराधी से नहीं, अपराध से घृना करो” पढ़ा होगा और बस लग गये  अजमाने में । महाशय अपने आप को  कोस रहे होंगे कहाँ इस चक्कर में पड़ गए ।
      आज तक पूरी दुनिया ने पुलिसिया क्रूर चेहरा ही देखा है अचानक उसका  इंसान के रुप में अवतरित होना,  अचम्भे को तो जन्म देगा ही । पता नहीं कौन सी मजबूरी रही जनाब की जो ऐसा कृत्य कर बैठे । भाई साहब  को  यदि कोई अच्छा काम करने की सूझी ही थी तो इसी अपराधी को क्यों चूना ? या तो इस “ किस”  के पिछे राजनैतिक पहलू होगा या भावनात्मक । हो सकता है अपराधी के करीबी जो अपनी भावना को उस तक पहुँचा नहीं पा रहे होंगे उन्होंने इन महाशय को माध्यम बनाया हो । ये भी हो सकता है कि इस काम के लिए उन्हें किसी तरह प्रलोभित किया हो । या एक अच्छा इंसान बनने की अंतरात्मा उन पर हावी हो गई  और वो ये कर बैठे ।
      क्या पुलिस वाले भाई साहब ने  सच में कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया जिसकी सजा उन्हें निलम्बित होकर भोगना पड़ा ?  क्या वो केवल ड्ण्डे की भाषा का ही उपयोग कर सकता है ? क्या उसके अन्दर एक इंसान नहीं हो सकता ? उसके मुँह से “ किस ”  नही “ गाली ”  ही निकलना चाहिए ? अब कोई पुलिस वाला ऐसी हिम्मत कर पायेगा ? कैसे हम उम्मीद रखे कि भविष्य में कोई पुलिस वाला मित्र के रुप नजर आयेगा ? क्या उन्हें प्रशिक्षण के दौरान ये नहीं सिखाया गया  कि एक अच्छा इंसान बनने की नुमाईश केमरे के समक्ष आने पर ही नहीं करे ? ऐसे अनेकों प्रश्न इस घटना ने समाज और सरकार के समक्ष खड़े कर दिये है ।

      फिर भी  भरोसा है दूसरे पुलिस वाले, इसको एक अच्छा इंसान बनने की दिशा में अंतिम कदम न समझेंगे । वो अपनी  कोशिशे जारी रखेंगे । केवल “किस” को ही इसका साधन न बनायेंगे ।  कसम खायेंगे कि किसी भी अपराध  होने से पहले ही वो एक्टिव हो जावेंगे, जब कोई थाने में एफ आई आर लिखवाने आये तो उसे दरिदंगी से देखने की बजाय उसको  भाई या बहन के रुप में सुनकर टरकाने की बजाए तुरंत दर्ज कर आगामी कार्यवाही पर जूट जायेंगे । किसी भी घटना की सूचना मिलने पर मीडिया के पहले स्थल पर पहुँच जायेंगे । देखिये,  ये कर के आप जरुर एक अच्छे वर्दीधारी इंसान बन जायेंगे । लोग आपका क्रूर रुप भूल कर एक मित्र के समान पसन्द करेंगे  । फिर आप को किसी “ किस ” विवाद में न पड़्ना पड़ेगा बल्कि लोग आपको  “किस” करेंगे ! ********************************devendra218767@gmail.com

Monday 11 August 2014

क्या होगा इनका भविष्य ?

      क्या होगा इनका भविष्य ?
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
म.प्र.व्यावसायिक परीक्षा मण्डल द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित प्रे-मेडीकल टेस्ट ( पी.एम.टी ) में हुए  घोटाले में अभी तक 345 छात्रों की परीक्षा निरस्त कर दी है एवं लगभग 70 छात्र - छात्राओं के प्रवेश को निरस्त कर दिया है । स्पेशल टॉस्क फोर्स ( एस.टी.एफ़ ) इस मामले की जाँच कर रहा है । इन छात्र - छात्राओं मे कुछ तो कोर्स के दूसरे - तिसरे वर्ष में अध्य्नरत थे । कुछ बच्चे और उनके अभिभावक फरार है ।
ये सही है कि इस तरीके से प्रवेश पाने वाले छात्र - छात्राएं इस डीग्री के योग्य नहीं थे । कमजोर व्यव्स्था का फायदा उठा कर इन लोगों ने पैसे के बल पर प्रवेश पा लिया । लेकिन ये भी सच है कि वे मासूम बच्चे जो जीवन के बहुमूल्य सोलह-सत्रह वर्ष कड़ी मेहनत कर आए थे क्या अकेले दोषी है ? ये चिंता का गहन विषय है ।
शंका के घेरे में आए छात्र - छात्राओं की दो- तीन श्रेणी हो सकती है । प्रथम वो जिसमें छात्र - छात्राओं    को ये पता था कि वे इस टेस्ट को पास नहीं कर पायेंगे । ऐसे में उन्होनें इन दलालों से सम्पर्क किया और व्यव्स्था का फायदा उठाते हुए येन केन टेस्ट को पास कर प्रवेश पा लिया । इस  प्रक्रिया में निश्चित रुप से उनके अभिभावकों ने हर प्रकार से सहयोग दिया होगा ।
दूसरे वो छात्र - छात्राएं है जिन्हें स्वयं कुछ पता नहीं किंतु उनके अभिभावकों ने उच्च महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए दलालों से सम्पर्क किया और अपनी काली कमाई के सहारे से उनकों टेस्ट पास करवाया  और प्रवेश दिला दिया ।
तिसरी श्रेणी वो है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से सम्भवतः शामिल नहीं हो  किंतु शंका के घेरे में आ गए हैं । इस प्रकार इन तीनों श्रेणियों के छात्र - छात्राएं आगे के अधय्यन से वंचित हो गए हैं । कुछ बच्चे और अभिभावक जाँच के घेरे में होने से पुलिस की पूछ्ताछ का सामना कर रहें हैं । इसमें जो भी दोषी है  उन्हें सजा जरुर मिलना चाहिए किंतु उन बच्चों की मनोदशा क्या होगी जो किशोर अवस्था से गुजर रहे हैं । जाँच के पश्चात यदि ये निकलता है कि वे दोषी नहीं है तो बताइये उनके भविष्य का क्या होगा ? क्या वे इस दाग को मिटा पायेंगे और पुनः समाज के समक्ष पुनर्स्थापित हो पायेंगे ?
किशोरअवस्था बच्चों में एक वो अवस्था होती है जिसमें वे अपनी स्वतंत्रता से विकास करने का प्रयास करते हैं । एक स्वस्थ सामाजिक वातावरण मिलने से किशोर अपने जीवन की  दहलीज़ पर सफलतापूर्वक पहला कदम रखता है । किंतु इसी के विपरित उसे यदि गलत वातावरण मिले तो वो समाज के किए समस्या भी बन सकता है । ये बच्चे सभी किशोरअवस्था  से गुजर रहे हैं । इनकी मनोस्थिति किस अवस्था में होगी हम बेहतर समझ सकते हैं । ऐसे में इन्हें अपराध की ओर जाने से रोकने हेतु या कोई अप्रिय घटना घटे उसके पूर्व ही इनमें विश्वास जागृत करना होगा । 
जैसा कि हम भली भांती समझते है कि हमारे यहाँ कि जाँच और न्यायिक प्रकिया की चाल कितनी धीमी है । यहाँ फास्ट ट्रेक न्यायलयों  में भी फैसले सत्तर अस्सी सुनवाई के पश्चात एक डेढ वर्ष में आता है । तो क्या इस लम्बी प्रकिया और फैसले के इंतजार में ये किशोर अपने जीवन के निर्णायक समय को ऐसे ही जाया कर देंगे  ? प्राकृतिक न्याय इसकी कभी ईजाजत नहीं देता । तो फिर  कुछ ऐसे  उपाय होंगे जो इन्हें  इस झंझावात से बाहर निकाल सके  ?
एक अलग से स्वतंत्र एजेंसी द्वारा पुनः  प्रवेश टेस्ट को लिया जाए । और टेस्ट  में उत्तीर्ण होने पर इन किशोरों को दोष मुक्त कर अपने सुनहरी भविष्य की ओर आगे जाने का  अवसर दिया जाए । हाँ,  इनसे ग्रामीण क्षेत्र में दस वर्ष तक सेवा करने का बॉण्ड जरुर  भरवाया जाए ।  जो अभिभावक दोषी करार दिये जाते हैं उन्हें  कानूनसम्मत  सजा दी जाए । यहाँ किसी भी तरह से अपराध की पैरवी नहीं की जा रही है किंतु ये अपराध ऐसा भी नहीं है जिसकी सजा वो जीवनभर भोगे । एक हत्या का अपराधी भी द्स साल की सजा भोग कर पुनः समाज में  अपने परिवार के साथ सामान्य  जीवन यापन करने लगता है तो फिर ये क्यों नहीं ?
**********************************************






कल्पतरु एक्सप्रेस दिनांक 09 अगस्त 2014

Add caption

हिन्दी वेब पत्रिका " वेब दुनिया " दि 11 अगस्त 2014

Friday 1 August 2014

प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल, www.newsforall.in

न्यूज़ फ़ॉर ऑल

प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल

देवेन्द्रसिंह सिसौदिया 
प्रधान मंत्री अपनी ब्रिक्स यात्रा के दौरान केवल दूरदर्शन, पीटीआई और एएनआई के केवल छह पत्रकारों को अपने साथ लेकर गए । प्रधानमंत्री के इस कदम को कई नजरियों से देखा जा रहा है। कहा जाता है कि वे कांग्रेस की इस परम्परा को तोड़ना चाहते है जिसमें लगभग 35-40 पत्रकार और सम्पादक, प्रधानमंत्री के साथ विदेश यात्रा किया करते थे । पत्रकार बन्धुओं में इस बात को लेकर काफी प्रतिक्रियाएँ की जा रही है । कुछ इसे सही मानते तो कुछ गलत । बह्स का एक मुद्दा बन गया है। प्रधान मंत्री के इस निर्णय के पिछे दो कारण हो सकते है । पहला विदेश यात्राओं के नाम पर हो रहे खर्चों को कम करना । बड़े बड़े प्रतिनिधिमण्डल सामान्य तौर पर ऐसी यात्राऑं में शामिल होते है । इनमें पत्रकारों के साथ अधिकारी और अन्य सदस्य होते हैं । उन्हें लगता है जो भी कार्यवाही वहाँ होगी उसकी रिपोर्टींग एक पत्रकार करेगा जो सो पत्रकार । फिर क्यों इतने लोगों के भारी भरकर खर्च को आम गरीब जनता के सर पर डाला जाए । यदि इस प्रकार होने वाले व्यय को रोका जाए तो काफी राजस्व की बचत की जा सकती है । इस बचे हुए राजस्व को किसी और अन्य कल्याणकारी योजनाओं मे व्यय करने से आम जनता को लाभ पहुँचेगा । जो मीडिया मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभा रहा था वो भी इस कार्यवाही को ठीक नहीं बता रहा है । कई पत्रकार और सम्पादक तो बुलावे का इंतज़ार ही करते रह गए कि उन्हें साथ जाने का न्योता मिलेगा । किंतु वे केवल कुछ ऐजेंसियों के पत्रकारों के एक छोटे प्रतिनिधि मण्डल को लेकर विदेश पँहुच गए । वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्य ने फेसबुक पर इसी मुद्दे को लेकर एक बह्श छॆड़ी । वॉल पर आई प्रतिक्रियाएँ काफी दिलचस्प है । एक पत्रकार तो कहते हैं वे पैसा देकर ऐसी यात्रओं मे शामिल होते हैं । इसकी सत्यता को आप समझ ही गए होंगे । एक कमेंटस बड़ा हास्यास्पद आया कि मोदी नहीं चाह्ते थे कि इस यात्रा की कमी को भारत तक पँहुचने दिया जाए । कुछ ने पत्रकारिता के गिरते स्तर को दोषी माना । वरिष्ठ पत्रकार ओमकार चौधरी अपनी वॉल पर कहते है “ मेरे विचार से तो विदेश दौरों पर पत्रकारों की भारी-भरकम फौज को नहीं ले जाकर प्रधानमंत्री मोदी बहुत उत्तम कार्य कर रहे हैं। जिन्हें उन्हें गालियां ही निकालनी हैं, वे जी भरकर अपना शौक पूरा करें।” बहश होना चाहिए । यह एक स्वस्थ परमपरा है । विचारणीय प्रश्न ये है कि क्या पत्रकारों के भारी भरकम दल का उनके साथ होना आवश्यक था या नहीं ? देखा जाए जो इस यात्रा में जो कुछ भी हुआ वो पूरी दुनिया तक ठीक वैसे ही पहुँचा जैसे के पूर्व के प्रधानम्ंत्रियों के दौरो के समय होता था । फिर सैकड़ों पत्रकारों का यात्रा के कारवां में शामिल न होने से क्या फर्क पड़ा ? यहाँ ये गोर करने की बात है कि मोदीजी के उच्चस्तरीय शिष्टाचार मण्डल में भी कटौती करते हुए वित्त राज्य मंत्री निर्मला सिथारमन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ए.के. डोवल एवं विदेश सचिव सुजाता सिंह को शामिल किया गया । यदि बात मितव्ययता की है तो आशा की जाती है कि मोदीजी केवल पत्रकारों और सम्पादकों के प्रतिनिधि मण्डल में कटौती तक ही सीमित नहीं रहेंगे अपितु उन सभी शासकीय सेमीनार, कार्यशालाओं, मंत्रियों के विदेशी दौरों, अधिकारियों के शैक्षणिक दौरों, मंत्रियों की यात्राओं के काफिलों जैसे अनेकों अप व्यय वाले काम-काज की समीक्षा कर प्रबन्धकीय एवं स्थापना व्यय में कमी लायेंगे । यदि इस कार्यवाही में सफलता मिलती है तो निश्चित ही इसका लाभ भारत की गरीब जनता और करदाताओं को मिलेगा ।
प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल
  • Title : प्रधानमंत्री का विदेश दौरा और छोटा प्रतिनिधिमण्डल
  • Date : 3:27 PM
  • Labels : 

कर एवं सब्सिडी प्राणाली में सुधार आवशयक है, अक्षर वार्ता दि 09 जुलाई 2014


डॉलर का सठिया जाना, जन सन्देश टाईम्स , दि. 03 जुलाई 2014


निज सेवा ही राष्ट्र सेवा , क़ल्पतरु एक्सप्रेस दि. 03 जुलाई 2014


अथ श्री महा बाई पुराण , जनवाणी 06 जुलाई 2014


टमाटर भी सचिन की तरह् शतकवीर हो गया





टमाटर भी सचिन की तरह् शतकवीर हो गया । आज जनवाणी में " अब टमाटर शतकवीर " अब शतकवीर टमाटर
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया 

जब से शतकवीर सचिन तेन्दुलकर को भारत रत्न से नवाजा गया है तभी से हर कोई शतकवीर की दौड़ में शामिल हो गया है । जिसकी की दो क़ौड़ी की कीमत नही थी वो भी शतकवीर बनने के ख्वाब देख रहा है । फिर भला सब्जियाँ क्यों पिछे रहती ? उनके भी अपने अरमान है । कौन है जो इज्जतदार नही बनना नहीं चाहता सो आलू टमाटर भी शतकवीर बन बैठे ।
देश में समझों शतकवीर की बाड़ आ गई है । देश का कोई भी घोटाला सो करोड़ से कम का हो तो समझो घोटाला हुआ ही नहीं । इससे छोटे घोटालों को कोई गम्भीरता से नहीं लेता । सीबीआई से जाँच की मांग भी शतकवीर घोटालों की ही होती । जब भी किसी भ्रष्ट बाबू या अफसर के घर छापे पड़्ते है तो 100 करोड़ तो ऐसे निकलते है मानो उसके यहाँ नोटों का झाड़ लगा हो । इसमें साधारण सब्जी ( आलू – टमाटर ? ) खाने वाला चपरासी भी पिछे नहीं रहता । ये भी शतकवीर बने भ्रष्टाचार रत्न की उपाधी प्राप्त करने की दौड़ मे अव्वल है ।
टमाटर की बड़ती महत्ता को देख कर ऐसा लगता है शीघ्र ही कोई फिल्मकार “वेजीटेबल किंग टमाटर” नामक फिल्म बनाकर एक ही सप्ताह में हुई कमाई के सारे रेकार्ड तोड़ देगा । ये दिगर बात है कि इस फिल्म को देखने वे ही लोग सो से डेड़ सो रुपये वाले टिकट खरीद कर जायेंगे जो एक किलो टमाटर नहीं खरीद पा रहे है । इस फिल्म में जो डायलाग होंगे वो इस प्रकार होंगे – “ मेरे पास बंगला है गाड़ी है बैंक बैलेंस है रुपया है , तुम्हारे पास क्या है ? “ मेरे पास टमाटर है ! “ क्या तुमने उन टमाटरों का बीमा करवाया है? गुलजार साहब का गीत “मेरा कुछ सामान, तुम्हारे पास पडा है....... मेरा वो सामान ( टमाटर ) लौटा दो“ दोहराया जायेगा ।

टमाटर विश्व में सबसे ज्यादा प्रयोग होने वाली सब्जी है।टमाटर में भरपूर मात्रा में कैल्शियम, फास्फोरस व विटामिन सी पाये जाते हैं। हर दृष्टी से गुणकारी टमाटर कई बिमारियों को नियन्त्रण करता है । अब टमाटर लोगों के घरों में नही अपितु न्यूज, धरना प्रदर्शनों में ही दिखाई देता हैं । जो भी हो इस बात से कविवर जरुर खुश है कि अब उन्हें मंच पर टमाटर नहीं खाना पड़ेगा क्योंकि महंगे जो इतने हो गए । 
शतकवीर का अपना महत्व होता है । कोई भी कलाकार, लेखक, फिल्मकार , गायक , संगीतकार और खिलाडी तब तक अपने आप को परिपूर्ण नहीं मानता जब तक कि उसकी उस विधा में शतक न लग जाए । इन शतकवीरों में नेताओं को कम न समझना । ह्मारी संसद के एक शतक से अधिक सांसदों की सम्पति शतक लाख ( एक करोड़ ) से अधिक है । फिर भी संसद के कैंटीन में ये गरीब बीस – तीस रुपये खाने की थाली खा कर उदर पूर्ती करते हैं । क्या सब्जियों के दाम बड़्ने के बाद संसद में भी एक थाली भोजन का दाम एक शतक ( सो रुपये ) तक पहुँच गया ? बेचारे आलू ट्माटर सोच रहे होंगे इतनी मेहनत कर हम एक शतक तक डालर को पछाड़ते हुए पहुचे हैं किंतु संसद में तो हमारी इज्जत वही बीस रुपये की ही है । बेचारा शतकवीर टमाटर । 
***********************************************************************