Sunday 2 November 2014

रेडियो के अच्छे दिन

       

                              रेडियो के अच्छे दिन आ गए 


       देश के प्रधान मंत्री रेडियो पर क्या देश को मन की बात करने लगे कि रेडियो भी फुला नहीं समाने लगा है । कहते है कुड़े के भी दिन फिरते है.... अब तो लोगों ने देख भी लिया । रेडियो तो फिर रेडियो है । उसके दिन भी अच्छे आ गए । एक ज़माना था जब लोग रेडियो बगल में टांगे इतराते फिरते थे । गाँव में एक दो हुआ करते थे । देश वासी  ऑल इंडिया रेडियो से आने वाले समाचार देश में होने वाली हर घटना से रुबरु कराते थे । लोग आज भी अमीन साहनीजी की बिनाका गीत माला को भूल नहीं पाए है । दुनिया की खबर के लिए बीबीसी लन्दन एक मात्र सहारा हुआ करता था । समाचारों की भाषा और विश्वसनीयता इतनी स्टेण्डर्ड हुआ करती  थी कि लोग समाचार वाचकों के मुरीद हुआ करते थे । उनके समाचार पढने के तौर तरिकों की नकल की जाती थी । कईं लोगों ने अमीनजी से ही कार्यक्रम का संचालन कैसे किया जाए सिखा ।
      जब से बुद्धू बक्सा आया बेचारे रेडियो के दिन लद गए । कुछ दिन तो वो अपनी अहमियत को साबित करने में सफल रहा किंतु जैसे ही निजी चैनलस शुरु हुई इसकी तो हत्या ही हो गई । एक समय तक तो  ये घर के ड्राईंग रुम मे दिखता था किंतु अब तो ये स्टोर रुम में भी दिखाई नही देता । धन्य हो मोदी जी का जो रेडियो को फिर ज़िन्दा कर दिया । रेडियो के माध्यम से मोदीजी मन की बात कर लोगों के मन के अन्दर प्रवेश कर रहे है । आशा है केवल रेडियो के ही अच्छे दिन नहीं आयेंगे बल्कि हम सब के शुभ दिन आयेंगे फिर चाहे वो कुड़ा,  झाड़ू या साड़ू ही  क्यो न हो  । 
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया