Sunday 6 September 2015

स्कूलों के स्तर को सुधारने हेतु शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन दें

        स्कूलों के स्तर को सुधारने हेतु शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन दें
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
इलाहबाद हाई कोर्टॅ के आदेश,  सरकारी स्कूलों मे नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों के अनिवार्य रुप से पढाने का पूरे देश में स्वागत किया जा रहा है । इस आदेश का मूल उद्देश्य सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर पर नियंत्रण पाना है । एक हद तक ये उचित भी प्रतीत होता है । किंतु ये मान लेना कि केवल होदेदार लोगों के बच्चों को वहाँ  भेज देने भर से स्तर सुधर जाएगा भी गलत है । स्कूलों में शिक्षा के गिरते स्तर के अनेक कारण है ।
स्कूलों के जर्जर भवन, मूलभूत जरुरतों का अभाव, शिक्षकों का गैर शैक्षणिक कार्यों में व्यस्त रखना, आठवी स्तर तक उत्तीर्ण करने की अनिवार्यता, शिक्षकों के तबादलों में राजनैतिक हस्तक्षेप, शिक्षकों में प्रशिक्षण का अभाव, उच्च अधिकारियों के द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण दौरों की औपचारिकता जैसे अनेकों कारण है जो सरकारी स्कूलों को दोयम दर्जे पर ला खड़ा कर देती है । इनके अलावा हमारे सरकारी स्कूलों के गिरते स्तर के कारण में प्रमुख कारण शिक्षकों का सम्मानीय स्थान प्रदान न करना है ।
प्रदेशों के स्कूलों में जो शिक्षक़ कार्य करते हैं उनके कई पदनाम और वेतनमान है । यहाँ  व्याख्याता, शिक्षक , सहा शिक्षक, सहा अध्यापक, संविदा शिक्षक , अतिधि शिक्षक , गुरुजी जैसे पद निर्मित है । हर पद के दो तीन वर्ग है । प्रत्येक  पद और वर्ग के  भिन्न भिन्न वेतन मान । वेतनमान भी ऐसा की उसी स्कूल के स्थाई भृत्य को प्राप्त वेतन से आधा !  
एक ओर बच्चों को ये शिक्षा दी जाती है कि जातिवाद और वर्गभेद नहीं करना चाहिए । वहीं जो ये ज्ञान दे रहा है वो स्वयँ वर्गभेद का शिकार हो रहा है । एक समान कार्य करने के पश्चात उनके बीच वर्गभेद करते हुए अलग अलग वेतन दिया जाता है । ये कितनी बड़ी विडम्बना है कि बुद्धीजीवी कहलाने वाले इस पेशे में एक को पाँच हजार रु रोज मिलते है तो दूसरी ओर मात्र पाँच हजार रुपये प्रति माह ।
 पिछ्ले पच्चीस वर्षों से स्थाई पद पर नियुक्ति न करते हुए जब भी जो सरकार आई उन्होंने विभिन्न स्रोत के माध्यम से अस्थाई तौर पर अलग अलग नाम से शिक्षकों की भर्ती की  । सम्भव है इसके पीछे को कोई राजनैतिक उद्देश्य रहा हो ।   
देश में व्याप्त बेरोजगारी के कारण उच्च अहर्ता प्राप्त युवा इतने कम वेतन के बावजूद इन सेवाओं में मजबूरीवश आ जाते हैं । इसके पीछे केवल एक कारण है कि भविष्य में उन्हें सरकारी नौकरी स्थाई कर उचित वेतन मिल जाएगा । वर्षों के संघर्ष और आन्दोलनों के पश्चात वेतन, सेवाशर्तों और सुविधाओं में जरुर सुधार आया है किंतु अभी भी सम्मानजनक  नहीं है ।  
देश के लगभग पचास प्रतिशत शिक्षक अस्थाई तौर पर न्यूंतम वेतन पर कार्य कर रहे हैं । वेतन को लेकर शिक्षकों में हीन भावना बड़ रही है । उसी योग्यता वाले निजी स्कूलों के शिक्षकों का वेतन उनसे बेहतर होता है । वहाँ केवल तीन स्तर होते हैं – प्री प्राइमरी टीचर, ट्रेन्ड ग्रेजुएट टीचर और पोस्ट ग्रेजुएट टीचर । इनने लिए न्यूंतन अहर्ता माण्टेसरी, बेसीक, बीएड और एम एड है । कई बार देखने में आता है कि पीचडी, एम फील जैसी उच्च योग्यता रखने वाले युवा निम्न पद और न्यूंतन वेतन पर काम करते हैं । इनका वेतन श्रम कानून के अनुसार प्रशिक्षित श्रमिकों से भी कम होता है । ये श्रम कानून के उल्ल्ंघन के साथ ही शोषण भी है । यदि शासन सरकारी स्कूलों की गुणवता को कायम रखना चाह्ती है तो विभिन्न उपायों  के साथ शिक्षकों के वेतन मान और पद नाम की खाई को समाप्त करना चाहिए । जब तक शिक्षकों को उचित सम्मान नहीं मिलेगा वो अपने कार्य को केवल औपचारिक रुप से निभाते रहेंगे । उनकी तुलना ‘गोविन्द’  से की गई है वहीं उनका वेतन भृत्य गोविन्द से भी कम हो तो कैसे वो स्वयं के साथ न्याय कर पायेगा, बच्चे उनका सम्मान करेंगे, समाज में उनकी इज्जत बड़ेगी और वे भविष्य  के प्रति निश्चिंत होंगे ?  आशा है शासन शिक्षक दिवस पर छोटे मोटे सम्मान समारोह की  केवल औपचरिकता पूर्ण न करते हुए इनकी आर्थिक सुदृढता के भी  प्रति गम्भीरता से विचार कर शीघ्र ही समाज में सम्मानजनक स्थान प्रदान करने हेत्तु निर्णय लेगा । जब शिक्षक आर्थिक और मानसिक रुप से संतुष्ट होगा तो स्वतः ही अपने कार्य  में रुचि लेगा और शिक्षा का स्तर सुधरेगा ।  


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