Saturday, 27 September 2014
Friday, 19 September 2014
Thursday, 18 September 2014
क्या हम एक महाशक्ति बनने की ओर है ?
क्या हम एक महाशक्ति बनने की ओर है
देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
अंग्रेज,
भारत वर्ष में एक व्यापारी बन कर आए और शासक के रुप मे काबिज़ हो गए । अपनी
राजनीतिक मह्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए उन्होंने इस दौरान अनेकों हथकंडे
अपनाए । अंत के नब्बे वर्ष में जब उन्हें लगने लगा कि ये
क्षेत्र छोड़ कर जाना पड़ेगा तो उन्होंने कूटनीतिक कदम उठाये
और भारतवर्ष को कमज़ोर करने के लिए टूकड़े करने की ठान ली । भारतवर्ष को
नेपाल, भूटान अफगानिस्तान, पाकिस्तान,
तिब्बत, बांग्लादेश, बर्मा ( म्यान्मार)
और श्रीलंका देश के रुप में आठ टूकड़े करने
में कामयाब हुए ।
इन देशों के मान्यता व परम्परा समान है वही
इनकी भाषाएँ व बोलियों में अधिकांश शब्द संस्कृत के ही है । खान-पान, भाषा बोली ,
बेश भूषा, संगीत - नृत्य, पूजा पंथ , सम्प्रदाय मे चाहे विविधता है किंतु कहीं न
कहीं एक दूसरे को जोड़्ते है । हम राजनीतिक रुप से जरुर एक दूसरे से अलग है किंतु
भौगोलिक संरचना हमकों बांधे हुए है ।
इन सभी देशों में एक सी समस्याएँ है । मादक
द्रव्य, महिलाओं और बच्चों की तस्करी, निरक्षरता, माओवाद, नक्स्लवाद और आतंवाद
जैसी अनेकों समस्याएं है जो यहाँ की फ़ीज़ा को बिगाड़्ती है । क्या इन समस्याओं से हम
एक जूट होकर लड़ नहीं सकते ? अब समय आ गया है कि ये सभी देश विचार करे और एक
राष्ट्र भारत वर्ष के झण्डे तले आकर विश्व के समक्ष एक शक्तिशाली राष्टृ के रुप में खड़ा होकर
तथाकथित महाशक्ति को टक्कर दे ।
अमेरिका अपने हथियारों की खपत के लिए पूरे
विश्व में एक-दूसरे पड़ोसियों को लड़ाता रहा है ये बात किसी से छिपी नहीं है । ये
उनकी कूतनीति है कि पहले चरमपन्थियों को वित्तिय और सामरिक सहायता करना और जब
स्थिति उस देश के नियंत्रण से बाहर हो जाए तो दिखावे के लिए सहयोग करने की
नौटंकी करना । इस प्रकार वो दोनों पक्षों
पर अपना दबदबा बनाए रखता है । अंत में सेना भेज कर विश्व और संयुंक्त राष्ट्र संघ
के समक्ष एक संकटमोचक बन कर आता है । इस
बात को पाकिस्तान और अफगानिस्तान समझेंगे और
भारतवर्ष में शामिल होकर रक्षा के क्षेत्र में हो रहे अरबों रुपयों के अपव्यय को
क्षेत्र के विकास में लगाने के लिए पहल करेंगे । हालांकि ये इतना आसान नहीं है
किंतु असम्भव भी नहीं । किसी और की हाथ की कठपुतली बन कर उसके इशारों पर नाचने से तो
अच्छा है अपनों के साथ मिलकर विकास के नए आयाम बनाए जाए ।
सन 1985 में क्षेत्रीय विकास के उद्देश्य को लेकर दक्षिण
एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन का गठन 8 देशों ने मिलकर किया था । आज तीस वर्ष
पश्चात भी ये संगठन अपने उद्देश्य पर खरा नहीं उतरा है । महज़ ये एक संगठन बन कर रह
गया है । ये कहे तो गलत नहीं होगा कि इन
वर्षों में दक्षिण एशियायी देशों की मुख्य पारम्परिक समस्याओं का निदान सम्भव नहीं
हो सका । सदस्य देशों के मध्य एक दूसरे के प्रति अविश्वास की भावना के कारण इस
संगठन की सकारात्मक प्रगती सम्भव नहीं हो पा रही है ।
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कुछ माह के कार्यकाल में इन आठ देशों में
से अधिकांश देशों की यात्रा कर एक अच्छा माहौल तैयार किया है । वो शीघ्र ही पाकिस्तान
यात्रा भी करने वाले है । इस बीच जापान यात्रा कर और चीन के राष्ट्रपति को अपने
देश बुला कर एक श्रेष्ठ क़ूटनीतिज्ञ होने
का परिचय दिया है । वर्षों से संघ का सपना रहा है कि पूर्व के समान पुनः भारत वर्ष
( अखण्ड भारत) का गठन हो जाए और दुनिया के समक्ष एक महाशक्ति के रुप में उभरे ।
जैसा कि हम जानते है कि भारत सामरिक,
आर्थिक, व्यावसायिक एवं कृषि के क्षेत्र में उतरोत्तर उन्नति कर रहा है । यदि ये सभी देश
एक हो जाते है तो हम एक मज़बूत संघ के रुप में विश्व के मानचित्र पर उभर कर आयेंगे
। हम सन्युक्त रुप से सैनिक शक्ति का उपयोग कर
शक्तिशाली बन जायेंगे । वहीं दूसरी और हम सब की एक करंसी हो जायेगी जिससे व्यापार
व्यवसाय सुलभ हो जायेगा । कृषि के क्षेत्र
में तो हर दृष्टि से विकसित है । विश्व के अन्य क्षेत्र में हम अपनी उपज को निर्यात
कर विदेशी पूंजी को एकत्रित करने में सफल रहेंगे । तकनिकी क्षेत्र में हम दुनिया
का नेतृत्व कर करते हैं जिसे पूरी दुनिया ने मान रखा है । भारत विज्ञान और
अंतरिक्ष के क्षेत्र में भी पूर्णतः सक्षम है ।
इतना सब जानते हुए लगता नहीं कि श्रीलंका
नेपाल, तिब्बत और भूटान को कहीं से कहीं तक कोई आपत्ति नहीं होगी । बांगलादेश, और मालद्वीप को जूड़्ने से आर्थिक
फायदा ही है । केवल पाकिस्तान और अफगानिस्तान ही है जिन्हें आपत्ति हो सकती है ।
ये देश अपने गिरेबा में झाँक कर देखे तो
समझ में आ जायेगी कि उन्होंने इतने दिनों क्या खोया क्या पाया ? कश्मीर समस्या का
निराकारण स्वतः ही हो जावेगा । अब समय आ गया है ये सारे राष्ट्र भारत के साथ जुड़
कर एक महाशक्ति के रुप में दुनिया के समक्ष दृड़्ता से खड़े हो जाये ।
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Wednesday, 17 September 2014
Sunday, 14 September 2014
Wednesday, 10 September 2014
Monday, 8 September 2014
पीठ पर बोझ
पीठ पर बोझ

सुबह सुबह
पीठ पर लादे बस्ता
वो लड़की
चली जा रही थी
स्कूल बस की ओर
सुनहरे भविष्य की
खोज में ।
ठीक उसी समय
चली जा रही थी
अपनी पीठ पर डाले
एक बड़ा सा खाली बोरा
कचरे के ढेर से
चमकीली पन्नियों
में
खोजते हुए
सुनहरा वर्तमान ।
शाम को
दोनों लौटती
अपने अपने घर
लिये
होम वर्क का बोझ
एक को करना था पूरा
माँ के साथ बैठ कर
तो दूजी को
पूरे घर के काम
माँ के घर आने से
पहले ।
दिन भर की थकावट
के बाद दोनों
सो जाती निदिंयाँ
रानी की
गोद में
एक सुनहरी सुबह
की आश में ।
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देवेन्द्रसिंह सिसौदिया
Saturday, 6 September 2014
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